कविता
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पेड जैसे स्वाभि –
मानी बनो!
जो हमकोदेता
हैफल!
पर लेता है
केवल जल !
फल देकर भी वह मनुष्य से ही
मारा जाता हैँ!
फल देकर भी वह जीवन से हारा जाता है!
पर वे काटते है जिस दानी पेड को!वे उसको
मिटा नही सकते
ह
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